अयोध्या की शिलाएं
अयोध्या की शिलाएं
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अयोध्या की ख़ामोशी को तोड़ती हैं
कही से आती पत्थर पर छेनी पड़ने की आवाज़
जिसपर कुछ चित्र उकेर रहा हैं एक कलाकार
एकदम तल्लीन होकर
अपने काम मे खोकर
बेसुध सा, कलाकार मन की उम्मीद को
शिलाओं पर उभार रहा है
शिला पर छेनी हथौड़ी की आवाज़
कुछ कहती है ख़ामोश अयोध्या से।
धूप में, बरसात में, आँधी तूफ़ान में भी
जमीन पर पड़ी ये शिलाएं
चमक रही हैं आशा और उम्मीद में
जिसको देख रही सब दिशाएं
कलाकार के छेनी हथौड़ी के
साथ गा रही हैं ये शिलाएं
कोई स्वागत गीत।
इन शिलाओं को विश्वास हैं
किसी के आने पर
उसके सम्मान में उठने के लिए
उसके साथ उठकर अयोध्या देखने के लिए
शिला बनी अहिल्या के जैसे
आज नहीं तो कल
कल नहीं तो परसों
परसों नहीं तो क़यामत के दिन तक भी।