अवतरण
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शून्य के गर्भ से
फूट पड़ा प्रकाश स्रोत
अजस्र धारा
प्रकाश कणों की
बह चली
मृत्युलोक की ओर
और वे उज्ज्वल
जाज्वल्यमान किरणें
भुला बैठीं अपने पतन को
चारो ओर से घेरती
प्रभूत अंधकार राशि
फैलाने लगी अपना मोहजाल
और बह चला जीवन
उन स्वार्थ, मोह,
लोभ की लहरों में
मोहित होकर
छद्म सुख की माया पर
नाचने लगीं किरणें
प्रसन्न हो
आत्म मुग्ध हो
भूल गयीं अपना लक्ष्य
प्राप्तव्य
चिर सुख
आत्मानन्द
सब कुछ ।