अवसाद
अवसाद
जो तुम्हारे साथ में है,
क्या वो अवसाद में है ?
होठों पर मुस्कुराहट लिए
आंखों में नमी उसके पास में है।
जो जी रहा है हर पल
अवसाद से पल-पल मरता है,
किसे बताये अपनी बात,
जग भी तो उस पर हंसता है।
बाहर जितनी शांति है,
उतना ही अंदर के शोर से लड़ता है।
चुप-चुप सा वो क्यों रहता है ?
एक अनजाना डर उसके मन में पलता है।
क्या आत्मा जिंदा है,
और इच्छाएं मर रही है ?
जानो क्यों आवाज़ ज़िंदा है,
और स्वर बिखर से रहे हैं ?
भावनाओं से वो जुड़ रहा है,
पर संबंधों से वो टूट रहा है।
व्यक्त तो करना चाहता है,
पर अभिव्यक्त नही कर पाता है।
प्रश्न अभिव्यक्ति का है मित्र !
मन ही मन वो कुलबुलाता है,
चाह कर भी कुछ कह नही पाता है,
आख़िर अवसाद कौन समझ पाता है..!
घूमती हैं मन में वो बातें सारी,
घुट-घुट कर वो जीता है।
कोशिश तो करता है निकलने की,
पर एक भवँर में फंसा रहता है।
कहीं देर ना हो जाए तुमसे,
मित्र तुम्हारा बहुत दूर ना चला जाए।
कुछ करो ऐसा..शोर भीतर का निकल आए,
और अंदर एक शांति छा जाए।
ख़ुद से पूछो...
क्या उसका हाथ तुम्हारे हाथ में है ?
जो तुम्हारे साथ में है,
क्या वो अवसाद में है ?