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Akanksha Hatwal

Inspirational

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Akanksha Hatwal

Inspirational

अवाक

अवाक

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चीखें निकलती है पीड़ा का इक

हिस्सा खुद के भीतर रखकर 

अवाक कर देती है वो चीखें जो गूंगी

रहती है असह्य वेदना सहारने के बावजूद भी


शिकायतें निकलती है कितनी

खामियों को भीतर रखकर

अवाक कर देती है वो मुस्कुराहट जो शिकायत

नहीं करती मिर्मम शिकायतें सुनने के बावजूद भी


राख निकलती है यादों कि अंतिम

शहादत खुद के भीतर रखकर

अवाक कर देती है यादें,

जो खत, देह, सबूत सब को मिटते देख

अमर रह जाती है अग्नि से मिलने के बावजूद भी।


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