STORYMIRROR

Akanksha Hatwal

Inspirational

4  

Akanksha Hatwal

Inspirational

अवाक

अवाक

1 min
183

चीखें निकलती है पीड़ा का इक

हिस्सा खुद के भीतर रखकर 

अवाक कर देती है वो चीखें जो गूंगी

रहती है असह्य वेदना सहारने के बावजूद भी


शिकायतें निकलती है कितनी

खामियों को भीतर रखकर

अवाक कर देती है वो मुस्कुराहट जो शिकायत

नहीं करती मिर्मम शिकायतें सुनने के बावजूद भी


राख निकलती है यादों कि अंतिम

शहादत खुद के भीतर रखकर

अवाक कर देती है यादें,

जो खत, देह, सबूत सब को मिटते देख

अमर रह जाती है अग्नि से मिलने के बावजूद भी।


এই বিষয়বস্তু রেট
প্রবেশ করুন

Similar hindi poem from Inspirational