STORYMIRROR

Akanksha Hatwal

Abstract

5.0  

Akanksha Hatwal

Abstract

आखिरी अलविदा अतीत से

आखिरी अलविदा अतीत से

1 min
418


वो प्यार था

या प्यार जैसा तूफ़ान

जब सामने से गुजऱा

मैं बस देखती रही।


इतनी जल्दी

सब तबाह कर गया

कि जब आँख खुली तो

सामने सब कुछ

बिखरा पड़ा था।


मैं उठी मैंने खुदको देखा

पूरी टूट चुकी थी।

कुछ नहीं बचा था

बिखरी यादें

बिखरे जज्बात।


आँखोँ में आँसू

टूटा हुआ दिल

नहीं बची कोई आस।


समझ नहीं आ रहा था

पुरानी यादों को समेटूँ

या छोड़ के

नयी यादें बनाऊँ।


बैठ के रोऊँ

कि सब ख़त्म हो गया

या उठूँ और

जो कुछ बचा है उसे समेटूँ।


फिर मैंने सोचा

कुछ देर यहाँ रुकना

सही है पर यहीं रुके रहना

बहुत गलत।


एक आखिरी अलविदा

कुछ ऐसे लिया मैंने

अपने अतीत से।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract