दोगलापन
दोगलापन
ह्रदय रुपी बगिया को ,कैसे ये श्मशान बना गया
यादों के फूल बोने की जगह,अधूरे अरमानो की लाशें बिछा गया।
संवरकर श्रृंगार कर सूरत को ,कितना सजा गया
मुहँ से ज़हर उगलते ही ,सारी ख़ूबसूरती गंवा गया।
एक आहट भर से ही, हर इंसान का दिल सहम गया
खुदको ही खुदा समझने का दूर हर वहम गया।
थोडे़ से उजाले की चाहत मे परिंदा शमा से मिलने गया
उजाला तो मिला नही,जान के साथ ईमान गवा गया।
जीने का इसे मोह नहीं ,ये बात वो सबको बता गया
सबकी नैया डुबा गया और,खुद को बचा गया।
