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औरो के लिये

औरो के लिये

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पेड़ अपने छावं में कहां सुस्ताता है

अपने घर का बीज रवायत के नाम पर

औरों के घर में बोना


यादों में दरख्तों का लहलहाना

यादों की सौंधी पोटली की परत

दर परत को टटोलना


उलझना ना किसी से बस

रेखाओं को लम्बा कर देना

क्योंकि हुनर का शोर जब मचता है

यकीनन कमाल कर देता है


मेहनत किसी की बेकार नहीं जाती

आज नहीं तो कल जरूर रंग लाती

हौसला बनाये रखना


कामयाबी का नज़ारा देखने के लिए

बस धीरज की पगडंडी को

संकरा मत करना।



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