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Rajeshwar Mandal

Abstract

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Rajeshwar Mandal

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अस्तित्व

अस्तित्व

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अस्तित्व में आते ही

 अस्तित्व बचाने की कोशिश

 कभी आन बचाने की कोशिश

 कभी प्राण बचाने की कोशिश

 और उससे भी ज्यादा

 आत्मसम्मान बचाने की कोशिश


 पग पग बैठे भेड़िए

 लोमड़ी और चीते

 ललचायी नजरों से देखते

 मानव मुखौटा में कुत्ते

 और चौराहे पर ताकते

 गिद्ध दृष्टि से लंपत लूच्चे


 किस किस से बचूं

 कैसे बचूं

 इसी उहापोह में दिन कटता है

 अक्सर डर लगता है उससे

 जो अपनत्व दिखाकर

 हाल चाल पुछता है


 फूंक फूंक कर रखते पांव

 क्या शहर क्या गांव

 सबका एक ही हाल है

 जिस पर करो ऐतवार 

 वही बुनते मकड़ जाल है


 इन्हीं झंझावातों के बीच

 मुझे चलना है

 बहुत चलना है

 गंतव्य के अंतिम छोड़ तक

 बे रोक टोक बिन दाग।


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