अस्मिता नारी की
अस्मिता नारी की
आज यूं ही फुर्सत में बैठी तो सोचा
कब हम सृजन कर पाएंगे ऐसे समाज का,
जहां हर नारी होंगी 'निर्भय' ना
बनना पड़ेगा किसी को 'निर्भया'।
यह तो तभी संभव हो पाएगा
जिस दिन पुरुषोचित अहं को,
नारी की अस्मिता का
सही अर्थ समझ में आएगा।
कुछ लोगों के समूह को तो नारी के सम्मान
और आत्मा से कहाँ है कोई वास्ता,
गर होता तो किसी 'निर्भया' के न्याय के लिए
इतना कठिन ना होता कोई रास्ता।
वास्तव में नारी को उसका समुचित
सम्मान नारी भी कहाँ है देती ,
और अगर जो देती तो क्यों कोई
महिला वकील किसी 'निर्भया' की मां से
गुनहगारों की माफी की गुहार लगाती ?
ना कुछ कर पाएँ तो इतना तो हम कर ही दें,
हाथ को एक हाथ दें, ऐसी लड़ाई में अपना सच्चा साथ दें,
न्याय मिलना भी इतना कठिन न होगा,
जब नारी ही खुद अपनी अस्मिता को
आत्मविश्वास दें, एक बुलंद पहचान दें।
हम ही से तो समाज है यह और हम ही हैं निर्माता
स्वच्छ विचारों से स्वस्थ समाज का
निर्माण हमें ही करना होगा
तब ही तो सार्थक हो पाएगा
"यत्र नार्येस्तु पुज्यते ,रम्नते तत्र देवता"।