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मिली साहा

Abstract Inspirational

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मिली साहा

Abstract Inspirational

असमानता एक सोच समाज की

असमानता एक सोच समाज की

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स्त्री-पुरुष दोनों ही अनुपम कृति है, ईश्वर की,

इनमें असमानता एक सोच है, इस समाज की,

मिटाकर स्त्री की पहचान, सदैव उसके मन में,

भेदभाव का बीज बोया जाता है, बचपन से ही,


समाहित है असीम शक्ति, फिर भी क्यों समझी जाती अबला ही,

भेदभाव की बेड़ियां पहनाकर क्यों छीन लेते, चाहत आसमां की,

वर्षों से कुंठित यह समाज आज तक क्यों नहीं ये समझ पाया है,

कभी बेटी, कभी पत्नी तो कभी मां रूप में वो शक्ति है पुरुषों की,


आत्मविश्वास से परिपूर्ण स्त्री अपने रास्ते बना सकती है खुद ही,

भेदभाव करने वाले क्या जाने वो तो हुंकार है ज़िंदगी के जंग की,

कहता ये समाज स्त्री का कोई घर नहीं, पुरुषों से उसकी पहचान,

एक बार खोलकर तो देखो बंधन वह तो खुद रोशनी है अंधेरों की,


विषम परिस्थितियों में भी हर काम करे, मिसाल है वो हौसलों की,

दया की मोहताज नहीं है स्त्री वो स्वयं आधार है इस कायनात की,

युगों-युगों संघर्ष करती आई है स्त्री समाज के रूढ़िवादी जंजीरों से,

स्त्री खुद अपनी पहचान है, उसे जरूरत नहीं किसी के पहचान की,


हर क्षेत्र में कार्य करती, फिर भी अवहेलना करती नहीं, कर्तव्यों की,

एक स्त्री में ही तो शक्ति समाहित है सृजन, पोषण और परिवर्तन की,

बिना थकावट, बिना शिकायत के आज भर रही है ऊंची उड़ान स्त्री,

अपने दृढ़ विश्वास से वो सोच बदल रही है स्त्री-पुरुष में बंटे लोगों की।

   


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