अरमानों का गला घोंटकर
अरमानों का गला घोंटकर
अरमानों का गला घोंटकर
शव के चिथड़े कर डाले
सने लहू से कपड़े मेरे
निज अम्बू से धो डाले।।
अपनी अर्थी अपने कांधे
अपनो की बारात लिए
चल पड़े पैदल तिमिर डगर पर
अमावस की रात लिए
अपने ही हाथों से हमने
अपनी चिता सजा डाले
अरमानों का गला घोंटकर
शव के चिथड़े कर डाले
गंगा तट पर निकले कुश को
विधिवत हमने गाड़ दिए
पहन कोपनी ले बैसाखी
सिर मौर भी माड दिए
तीन सात और दस बरखी भी
खुद से खुद की कर डाले
अरमानों का गला घोंटकर
शव के चिथड़े कर डाले
बंधन में था बाध्य नहीं मैं
बात उसूलों की हो गई
सहते सहते पार हुआ तो
कलम हमारी आज रो गई
कर इकट्ठे दुःख के गुठली
सबको हमने बो डाले
अरमानों का गला घोंटकर
शव के चिथड़े कर डाले