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priyanka sharma

Abstract

4.3  

priyanka sharma

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अरे हाँ, हाँ मै प्रेम करती हूँ

अरे हाँ, हाँ मै प्रेम करती हूँ

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मैं प्रेम करती हूँ

उन सभी जाने- अजाने परिंदों से,

जो हर सूरज आते हैं

मेरे छत की मुंडेर तक,

महज दाना खाने ही नहीं

बल्कि मुलाकात कराने एक नये दिन से,


हाँ, मैं प्रेम करती हूँ

उन सभी अनजाने जानवरों से

जो हर रोज़ आते हैं मेरे घर की देहलीज़ तक,

महज दो रोटी की खातिर

ही नहीं बल्कि पाठ पढ़ाने मुकम्मल वफाओं का,

हाँ, मैं प्रेम करती हूँ


प्रकृति के उस चक्रण से,

जो जहाँ गुमां नहीं होने देता सूरज को,

वहीं कदम पीछे नहीं

हटाने देता अंधेरों को भी,

हाँ, मैं प्रेम करती हूँ


उन सभी वत्सली भावों से जो

स्वीकार कर लेते हैं 'छद्म ' हार,

अपनी संतानों की मुलाक़ात कराने

की खातिर जीत से,

है होता निहित जिनकी '

क्षणिक' हार में सूत्र 'दीर्घ ' जीत का,

है स्वीकार मुझे ये, मैं प्रेम करती हूँ

अरे हाँ, हाँ, मैं प्रेम करती हूँ।


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