अर्ध : एक किन्नर /ardh ek kinnar by karan Bansiboreliya
अर्ध : एक किन्नर /ardh ek kinnar by karan Bansiboreliya
ना बनाया स्त्री ना बनाया मर्द
दिल में हमारे कितना समाया दर्द
कुदरत का करिश्मा या हमारी भूल
ना कली बनाया हमें ना बनाया फूल
ना मां का आंचल ना मिला बाबुल
दोनों की खूबी डाली बना दिया अर्द्ध
ना बनाया स्त्री ना बनाया मर्द
है मेरे अनेक नाम किन्नर, छक्का,हिजड़ा
ईश्वर की गलती से बस मैं जरासा बिगड़ा
रचना समझता ही नहीं कोई बस माने श्राप
अपना वजूद तलाशते हुए मैं अपनों से बिछड़ा
तालियों से करता गुजारा निभाता मैं फर्ज़
हूं ऐसा आज,है पिछले कर्मों का कर्ज
हम याद आते है जब सबको लगती गर्ज
है ईश्वर दे दे मुझे कोई स्थायी मर्ज
कभी किसी को ना बनाना अर्द्ध
दिल में हमारे कितना समाया दर्द
स्त्री पुरुष का भेद किया कल
दुनियां ने साथ हमारे किया छल
करने को निवास नहीं दिया थल
कल कल करता रहता बहता जल
समाज के ठेकेदारों ने समझा मल
ना बनाया स्त्री ना बनाया मर्द
दोनों की खूबी डाली बना दिया अर्द्ध
पवन ने जब अपना रुख बदला
बदला बदला, फिर वक्त बदला
शिक्षा बदली, संचालन बदला
मुझे देखने का चलन बदला
रहने का जब स्थान बदला
फिर हमारा स्वाभिमान था बदला
महाकुंभ में अर्धनारीश्वर
है उज्जैन में महाकालेश्वर
श्रंगार हुआ भारतमाता का
है कैसा करम विधाता का
पहली बार हमें हुआ गर्व
हम भिन्न नहीं हम है सर्व
धन्यवाद ईश्वर,ना बनाया स्त्री ना बनाया मर्द
दोनों की खूबी डालकर बना दिया अर्द्ध
© Karan Bansiboreliya
