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Karan Bansiboreliya

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Karan Bansiboreliya

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महानायक दशानन रावण भाग :03

महानायक दशानन रावण भाग :03

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त्रेतायुग की रामायण' का 

मैं ही उत्तम कारण हूं, 

हां हां मैं शिवभक्त लंकापति 

महानायक दशानन रावण हूं.!


देख रहे थे ब्रह्म विष्णु, देख रहे महेश थे

किस पाप राह पर भटक रहे लंका नरेश थे

भरी सभा में समझा रहे हनुमान रूप में महेश थे

पड़े पत्थर अक्ल पर, ना समझे लंका नरेश थे


जल गई थी लंका सारी,

आन पड़ी थी विपदा भारी

चिंता किस बात की करता,

जब साथ मेरे थे भोलेभंडारी


छिपा हुआ मेरे भीतर ज्ञान,

नाभी में समा रखा अमृत है

हे वानर..! देख जरा

लंका को यहां सब संवृत है


शक्ति का प्रतीक अजेय माया है

मुझ पर महाकाल की छाया है

पहले से पता था ये मृत्यु का संकेत है

ब्रह्मा ने रची ये नश्वर काया है


शांति दूत बन आया अंगद

देखकर उसे मैं हो गया गदगद

राम भरोसे सब उसने सौंपा था

भरी सभा में जब उसने पैर रोपा था

सभा अचंभित हुई जब सारी

पग में समा गए थे त्रिपुरारी


हे लंकेश! तुम हो मेरे पिता समान

पैर छुआकर करूं कैसे तुम्हारा अपमान ?

मेरे चरणों में कुछ नहीं छू लो चरण श्री राम के

लौटा दो मां सीता को, त्यागकर ये मिथ्या अभिमान


वेदों की गूंज और संगीत की तान थी

छंदों से सजा शिव तांडव स्त्रोत मेरी शान थी

गहन तपस्या और निरंतर ध्यान किया करता था

भूत भविष्य वर्तमान सबका ज्ञान किया करता था


हे रावण..! ना कोई संवाद,

ना कोई शांति दूत होगा

अब युद्ध होगा...03

आरंभ इतना प्रचंड होगा

साम्राज्य तेरा विखंड होगा

कर विचार लंका के लिए,

कुटुम्ब सहित तेरा दंड होगा


कंचन मृग वो बनकर आया था,

सीता का हरण कराने के लिए

ले आया मैं जानकी उनकी,

सुर्पनखा को बतलाने के लिए

माया का मारीच चला था,

माया पति को भटकाने के लिए

बहन के प्रतिशोध में हरी जानकी

संसार को दिखलाने के लिए

भटके राघव खोजने को जानकी

काल चक्र लोगों को समझने के लिए

समझ ना पाया माया, मायापति की थी

यहां परीक्षा दोनों की शक्ति की थी

मानव रूप में आए विष्णु धरती पर या

वाटिका में बैठी जानकी की भक्ति की थी


बीस भुजा दस शीश दिए थे मेरे भोले ने

मुझे कई आशीष दिए थे मेरे भोले ने

चंद्रहास खड़ग रखता अपने हाथ में

मायावी सेना को रखता अपने साथ में

सारी दुनिया कांपती रहती मेरी वाणी पर

अभय हूं मार न सकता कोई भी प्राणी पर


पक्ष खड़े विपक्ष खड़े है

ज्ञान कौशल में दोनों बड़े है

देख रहा ब्रह्मांड अंतिम चरण में

राम और रावण समक्ष खड़े है


खरदूषण दोनों को जब मार गिराया था

अक्षय कुमार को यम लोक पहुंचाया था

गहरी विडंबना में उलझा था मन मेरा

तब जाकर मैंने कुंभकर्ण को जगाया था


लक्ष्मी ही सीता है,

भूमि की सरिता है

विष्णु ही राम है,

उन में चारोधाम है

शिव ही हनुमान है,

राम का पुष्पक विमान है

लक्षण ही शेषनाग है,

नेत्रों में जिसकी आग है

जिसे समझ लाये हो स्त्री तुम

वो नारी लंका का नर्क का द्वार है

भैय्या अब मचने वाला हा हा कर है


कुंभकर्ण ! नहीं लौटाऊंगा मैं सीता को

जा बोल दे उस परब्रह्म विधाता को

युद्ध से ही निर्णय होगा

जा बोल दे उस निर्माता को

ये मेरे भाई ने मुझे बोध कराया था

फिर भी मैंने उसे रण भूमि में पहुंचाया था


जब मेघनाद की बारी आई थी

घटा काली जब उन पर छाई थी

कभी नागपाश, कभी शक्ति चलाई थी

कभी गरुड़, तो कभी बूटी लगाई थी

रात्रि युद्ध की सबको चिंता सताई थी

मायावी सेना से बचने की उसने युक्ति बनाई थी


संकटमोचन आए लक्ष्मण का संकट हरने को

पड़ी खबर सब जा पहुंचे यज्ञ खंडित करने को

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव सब के अस्त्र विफल हुए

बार बार कोशिश की एक भी बार न सफल हुए

मैं जतन कर रहा था भगवान से युद्ध करने को

मोक्ष का द्वार खुला देख इंद्रजीत खड़ा था मरने को


तुम सोच भी नही सकते

मैं कितना आगे बड गया था

इंसान क्या ! बहन के लिए

भगवान तक से लड़ गया था


मेरे पास मात्र एक बाण बचा था

कोई और नही अहिरावण बचा था

पाताल लोक में हा हा कर मचा था

राम लखन को ले आए निकाल कर

जब पवन पुत्र ने चक्रव्यूह रचा था


जो भूगर्भ के अंदर पाताल में जा सकता था

जो एक संजीवनी के लिए पर्वत ला सकता था

जो समुद्र लांघ कर मेरी लंका जला सकता था

जो नौ ग्रहों को मेरे बंधन से मुक्त करवा सकता था

एक पल जरा विचार करके तो देखो

क्या वो सीता को लंका से नहीं ला सकता था


युद्ध में सब हार गया था

सब एक जिद्द पर वार गया था

अंत समय जब आया था

तो मैंने हाथ थाम लिया था

मरते मरते फिर भी मैने

श्री राम प्रभु का नाम लिया था

न योनि न जन्म दिया था

सीधे वैकुंड धाम दिया था


भेद ना बताया होता विभीषण ने

मुझको हराया ना होता नारायण ने

ज्ञान की कमी थी लक्ष्मण में

ज्ञान दिया लक्ष्मण को मैंने रण में

घर का भेदी लंका ढाए

भाई विभीषण सा कोई न पाए


हरी हरि की अर्धांगी हरि को हराने को

हम असुर कुल का कल्याण कराने को

एक एक करके सब को पहुंचाया वैकुण्ड

यही रास्ता बचा था श्री हरि का पाने को


करो विचार एक पल का,

क्या मृग सोने का हो सकता था

क्या लक्षमन रेखा लांघे बिना

सीता का हरण हो सकता था

लक्ष्मी स्वरूपा जगदम्बा को

क्या रावण छू सकता था

रावण के बिना इतिहास में

क्या रामायण हो सकता था ?


कभी असुर,तो कभी ज्ञानी है

कभी निरंतर ध्यान,तो कभी अभिमानी है

कभी अधर्मी तो कभी महादानी है

अद्वितीय,अविरल,अनंत रावण की कहानी है



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