अप्रवासी और गणतंत्र दिवस
अप्रवासी और गणतंत्र दिवस
सालो बाद मैं अप्रवासी
अपने वतन लौटा हूँ
अवसर है गणतंत्र का
परेड देखने की तैयारी है
प्रातःकालीन बेला है
सौंधी सुगंध माटी की
हवा भी सुहानी है
पर ठंड अभी जारी है
उद्घघोषिका का उद्घघोषण है
कुछ ही देर में
कर्तव्य पथ पर परेड निकलने वाली है
कितना कुछ बदल गया
यह देखने की बारी है
राष्ट्रपति ने झंडा फहराया
राष्ट्रगान से की शुरुआत है
अब दस्तों की सलामी है
दंग हूँ मैं
थल जल वायु
हर दस्ते की कमान
महिलाओं ने सँभाली है
आत्म निर्भर भारत का नारा
जो रोज़ मैं सुनता था
अर्जुन,नाग,के नौ वज्र
मिसाइल प्रणाली ने
झलक आज दिखलाई है
स्वदेशी करण की आभा
स्वदेशी तोपों ने बढ़ाई है
अपने देश की एक नई छवि
झांकियों में मैंने पाई है
गर्जन करते हुए युद्धक विमान
उनके करतबों ने अद्भभूत
बहादुरी दिखाई है
आज़ादी के अमृत महोत्सव ने
कभी न भूलने वाली
भारत की अनुपम तस्वीर दिखाई है।