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Sheetal Jain

Inspirational

4.5  

Sheetal Jain

Inspirational

अप्रवासी और गणतंत्र दिवस

अप्रवासी और गणतंत्र दिवस

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427


सालो बाद मैं अप्रवासी 

अपने वतन लौटा हूँ 

अवसर है गणतंत्र का

परेड देखने की तैयारी है 

प्रातःकालीन बेला है

 सौंधी सुगंध माटी की

हवा भी सुहानी है 

पर ठंड अभी जारी है 


उद्घघोषिका का उद्घघोषण है 

कुछ ही देर में 

कर्तव्य पथ पर परेड निकलने वाली है 

 कितना कुछ बदल गया 

 यह देखने की बारी है 

 राष्ट्रपति ने झंडा फहराया 

 राष्ट्रगान से की शुरुआत है

 अब दस्तों की सलामी है 


दंग हूँ मैं 

थल जल वायु 

 हर दस्ते की कमान 

 महिलाओं ने सँभाली है 

 आत्म निर्भर भारत का नारा

 जो रोज़ मैं सुनता था 


अर्जुन,नाग,के नौ वज्र 

 मिसाइल प्रणाली ने 

झलक आज दिखलाई है 

स्वदेशी करण की आभा

 स्वदेशी तोपों ने बढ़ाई है

अपने देश की एक नई छवि 

 झांकियों में मैंने पाई है 


गर्जन करते हुए युद्धक विमान 

 उनके करतबों ने अद्भभूत

बहादुरी दिखाई है 

आज़ादी के अमृत महोत्सव ने

कभी न भूलने वाली 

भारत की अनुपम तस्वीर दिखाई है।


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