अपनापन अब कहीं बचा ही नहीं
अपनापन अब कहीं बचा ही नहीं
अपनापन अब कहीं बचा ही नहीं है,
बस दिखावा ही लगता सबको सही है,
कैसे पहचाने कौन अपना और कौन पराया,
असली चेहरा तो अब किसी का दिखता ही नहीं है,
हर रिश्ते में लेन देन का होने लगा है व्यापार,
मीठे बोल से जुड़े रिश्तो का दर्पण अब दिखता ही नहीं है,
किससे कहें दिल की बात, किससे कहें एहसास,
जिसे दिल से अपना माना वो किसी का अपना ही नहीं है,
मीठी मीठी बातों का मीठा जहर फैला चारों ओर,
सच की होती आजमाइश झूठ को कोई परखता ही नहीं है,
सच्चे मन से जो निभाए रिश्ते वही हो रहे हैं दूर,
भला चाहने वाले दिल को तो अब कोई समझता ही नहीं है,
खुशियों में तो क्या कहने कदम से कदम मिल जाते,
पर बुरे वक्त में साथ देने वाला अब कोई मिलता ही नहीं है,
दौलत आ जाए हाथों में चार रिश्ते और जुड़ जाते,
लड़खड़ाई ज़िंदगी को संभाले ऐसा कोई मिलता ही नहीं है,
अब दिखावा ही रिश्तों की बन गई है परिभाषा,
ऐसे रिश्ते ढोकर क्या हो जो रिश्ता होकर भी रिश्ता ही नहीं है।