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Ramanpreet -

Abstract

4.8  

Ramanpreet -

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अपना जहान

अपना जहान

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ये कैसी आधुनिकता,

ये कैसी पहचान है।

जहाँ रंगों में बट रहा,

ये सारा जहान है।

क्या तिरंगा आज भी,

हमारी एकता का निशान है।

लूटी हुई आबरूँ से,

ये सर ज़मीन पशेय्मान है।

देख भाईयों में दूरियाँ,

ये कुदरत भी हैरान है।

आज भी सैकड़ो को,

अमन और सुकून का अरमान है।

आओ सवारें इस रचना को,

जो अपना जहान है।

आने वाला कल कह सके,

मुझे इस जहान पे अभिमान है।




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