अपना अपना क्षितिज
अपना अपना क्षितिज
अपने अपने क्षितिज का माप देखना है,
अपने कर्मों की आंच पर भविष्य सेंकना है !
कोई करता सदकर्म तो कोई करता धोखा है,
ये जीवन तो सारे कर्तव्यों का लेखा जोखा है !
इस जीवन की बस एक यही है कहानी,
बचपन बीता तो आयी मदमस्त जवानी !
बचपन तो बीता दिन ऐसे बिताए,
कब कैसे करें क्या समझ ही न पाये !
मस्ती का आलम और ज़ालिम मौसम,
गये बीत दिन होश में तब हम आये !
झोंके हवा के जहाँ भी हम जाते,
माहौल ऐसा हम सब मिल बनाते !
वो प्यारे सलोने सुहाने से दिन थे,
काश हम फिर से बच्चे बन जाते !
आयी ज़वानी गृहस्थी का चक्कर,
अपनी ही दुनिया में बने हम घनचक्कर!
शादी फिर बच्चे फिर आगे की प्लानिंग
जब होश में आये तब शुरू हुई एजिंग !
बचपन जवानी के दिन यूँ बीत जाते,
पर बुढ़ापे के दिन काफ़ी लम्बे हो जाते!
एक-एक कर सब अपने हाथ छुड़ाते,
तन मन व सारे रिश्ते शिथिल हो जाते !
ज़िन्दगी का बहीखाता जैसे ही भरा,
आई मौत चुपके से और इंसान मरा !
सांस रहने तक इंसान का इंसान से नाता है,
पर मूर्ख इंसा जिंदा रहते यह कब समझ पाता है!