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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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अफवाहें

अफवाहें

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दरारों से जब रिश्ते झांकने लगे।

 दरवाजे खुल जाने चाहिए।

 शंका की लंका जलाकर 

 मन मिलाप कर लेना चाहिए।


बुन लिए इतने जालें।

रास्ता अब बचा कहां है।

हो गया अंधेरा इतना।

उजाले के निशा कहां है।


अफवाहों का महल बनाने चले थे।

 दीमक का घर बन कर रह गया।

 सच को रौंदने के खयाल से ही।

 वजूद पर सवाल उठ गया।


सच तो दूर,

 सच की परछाई भी छू नहीं पाई। 

 अफवाह कोई जाल नहीं बुन पाई।

 जख्म तो दूर एक खरोंच भी नहीं आई।

अफवाह कोई चाल नहीं चल पाई।


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