अनुपम कृति
अनुपम कृति
नारी है विधाता की अनुपम कृति
नारी से ही चलती है सृष्टि
रूप अनेक नारी है रखती
कन्या-युवती-गृहणी बनती
दुःख सदा अपनों के हरती
चंडी बन संहार दुष्टों का करती।
महिमा नारी की अपरंपार
नारी है ममता का भंडार
नारी से होते नर ध्रुव-प्रह्लाद समान
नारी का करते हम सम्मान।
