अनुभूति
अनुभूति
जब विफल हो जाता है ज्ञान
और जीत जाता है अभिमान
तब ज़िद कड़ी हो जाती है
हर बात पर अडी सी हो जाती है
उनका इनका और जाने किनका
पद मान सम्मान और स्वाभिमान की
मानो झडी सी हो जाती है
सुख दुःख में बदलने लगता है
जब अनुभूति विभूति सी हो जाती है
रिश्तों मे कुछ रिसने लगता है
मानो भाव की एहमीयत
कहीं खो सी जाती है
वो देव है और हम दानव
बस एक यही याद रहता है
दिल दिमाग के बस मे रहता है
हर फक़ीर यही बस कहता है
तुम तुम न रहो
मैं मैं न रहूं
आओ मिलकर हम हो जाये
मिलकर के कुछ हो जाये
और यह अपवाद कहीं सब खो जाये......।