अन्नदाता
अन्नदाता
एक वो है परेशान
जो अन्नदाता कहलाता है।
बे मौसम बादलों का
खौफ उसे खाये जाता है।
मुफलिसी में कुछ न अपना
कर्ज़ लेकर वो बीज बोता है।
कभी सूखा-कभी बारिश की
मार ही वो झेलता है।
राजनीति की गलियों में
शोर तो बहुत होता है।
मुआवजे की बात कर
दिखावा हर कोई करता है।
किसान नेता भी किसानों की
बात कहाँ करता है ?
वह भी तो राजनीति रोटियाँ
अपनी सेकता है।
जो चीर कर धरती का सीना
अन्न उगता है।
लाचारी में वो भी
खाली पेट ही सोता है।
व्यवस्थाओं की क्या बात करें
हवाईयों का शोर उमड़ता है।
मुफलिसी की रेत में दबकर
अन्नदाता ही सदा सोता है।
