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PRAGATI Bhattad

Drama

5.0  

PRAGATI Bhattad

Drama

अनमोल नदियाँ

अनमोल नदियाँ

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रहे भू सदा हरी-भरी

महके सुमन -सी रहे खिली-खिली

वन,उपवन,खेतों से दमके हरी-हरी

रहे तरंगिनी कलकल करती जल से भरीभरी


गंगा,यमुना,सरस्वती भारत की शान है

सिंधु ,नर्मदा,ताप्ति संस्कृति की पहचान है

गंडक,ब्रह्मपुत्र,गोमती सुख-समृध्दि के प्रमाण है


निर्मलता,शीतलता तरिणि के संस्कार है

कृष्णा, कावेरी,महानदी भारत की अम्रतधार है

सतलज,झेलम,साबरमती स्वअस्तित्व की पहचान है


बेतवा,दामोदर,गोदावरी से जन-जन कृतार्थ है

कानन,पादप ,पहाड़ से इनका आत्मसात है

धरा गौरवान्वित है इनके आच्छादन से

लेकिन हर दिशा में हाहाकार है,निष्प्राण समाज है


असुरों के अत्याचार है,सर्वत्र त्राहिमाम है

सुधा की पुकार है,पूर्णविराम की मांग है

नदियों के नाले बनने पर लगी लगाम है

पुनरनिर्माण की अलख जगाने की पुकार है

कुदरत के गुणों को आत्मसात करने की गुहार है


प्रकृति से आलिंगन करने की चाह है

हर दिशा में झूमती डाली,हिलते पत्ते,

हर डाली पर चिड़िया चहके,

हर कोना अब जुगनू से दमके,

हर तड़ाग पर दिखे परिंदे,

हर पहाड़ पर कानन झूमे,

ऐसी अवनी की फरियाद है।

सरिता को सागर से मिलने की चाह है


खुशहाली को वापस लाने की दरख्वास्त है

हर नदी को पुनः बनाना तीर्थधाम है

सरिता से हर समय बहते रहने का सविनय भाव है

स्वच्छ ,समृध्द भारत को बनाने की हुंकार है !

रिवर रैली का आगाज़ है...।


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