अनमने अठखेलियाँ
अनमने अठखेलियाँ
बाजार गये हम आंसू बेचने
हर खरीददार बोला की
अपनों के दिए गए तोहफे,
बेचा नही करते!
नासूर बन कुछ नम आँखों मे चुभने लगा था
मंजर
हमने जख्म बाँटने चाहे।
लोग मुट्ठी मे नमक लिए स्वागत को बढ़े थे।
हर तरफ हजारो काफिलो मे हम हर बार की तरह
तन्हा खड़े थे।
अहसास चटके,ख्वाब भटके दर्द का सैलाब लेकर
मलहम मे काँच के चूर चमकते भटकते
थके हुए से बोझिल कुछ रिश्ते मिले।
अपनो को भीड़ मे हम एक बार फिर तन्हा मिले।
सोचा था आँसू बेच कर चैन खरीद पाऊँगी।
जो भी मिले पल वो उधार मिले।
पल की मुस्कुराहट के बहुत लेन दार मिले
जो भी अहसास मिले दर्द की करवटों से लिपटे
बेशुमार मिले।
कैसे बयां करूँ तड़प नम आँखों की
जब भी देखा मेरे दिल के टुकड़े हजार मिले.....
सोचा चलो आँसू बेच कर कुछ खुशी के पल
खरीद लाए।
अपने से मिले आँसू ,हमने फिर हममें ही दबाये।
सिसकियो का मोल नहीं होता।
दिल की हसरतो का क्या कहे टूट कर काँच की तरह
बिखर गई मेरे दिल की जमी पर।
उनके मखमली पैरों में न चुभना जिनके लिए हम
नम आँखों में समुद्र छिपाये है।