अनकही मोहब्बत
अनकही मोहब्बत


अब मुझसे मोहब्बत को भी मोहब्बत कहा नहीं जाता
इस नफ़रत की दुनिया में रहा नहीं जाता
इस बदरंग दुनिया में अब रंग हमसे भरा नहीं जाता
मुझसे मोहब्बत को भी मोहब्बत कहा नहीं जाता
बेशक अब वो ख्वाबों में नहीं आती मेरे
लेकिन बिन उसके अब भी हमसे सोया नहीं जाता
वो जहाँ भी रहे महफूज़ रहे
टूट कर अब भी नफरत का बीज बोया नहीं जाता
मुझसे मोहब्बत को भी मोहब्बत कहा नहीं जाता
तोड़ कर तस्वीर मेरी, वो! बेशक रोई तो होगी ज़रुर
मगर अब उसके आँसुओं का भी हिसाब हमसे लिया नहीं जाता
बेहिसाब मोहब्बत की थी हमने भी कभी
लेकिन
उसकी यादों से अब भी किनारा किया नहीं जाता
मुझसे मोहब्बत को भी मोहब्बत कहा नहीं जाता