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Rishabh Katiyar

Abstract

5.0  

Rishabh Katiyar

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कमी लग रही है

कमी लग रही है

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बरसात होने के बाद भी

आँखों में नमी सी लग रही है

दिल में उतरने के बाद भी

उसकी कमी सी लग रही है।


बेशक आज अमावस नहीं

फिर भी आसमाँ में चाँद की

कमी सी लग रही है।


वो लाडली थी जिस घर की

आज उस घर में भी

उसकी कमी सी लग रही है।


एक सा बनाया है उसने

हम सबको फिर भी

आज अनेकता में एकता की

कमी सी लग रही है।


कोई लाख पूजता हो यहाँ

पहाड़ को फिर भी

कहीं तो इंसानियत की

कमी सी लग रही है।


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