अनजानी खताएँ
अनजानी खताएँ
पैर दहलीज ने रोके
कौन रोकेगा मन की सीमाएँ।
सजा उनकी भी मिलती है
करते नहीं हम जो खताएँ।।
तुम गगन के चाँद सम हो
धरा के चकोर सम हम हैं
दर्द जीवन में जो मिले
न तुम समझो न हम बताएँ।
सजा उनकी भी मिलती है
करते नहीं हम जो खताएँ।।
संग गुजरे थे जो पल
उनको कह लें हम मधुमास
रोना-गाना, हँसना-मिलना
सब हो गया अब इतिहास
जीवनभर जो सालेंगी
कहें हम किससे कथाएँ।
सजा उनकी भी मिलती है
करते नहीं हम जो खताएँ।।
कहाँ सम्भव
सभी भावों को अनुकृति मिले
करना जो तुम चाहो
वक्त की स्वीकृति मिले
एहसास जिन्दा है तुम्हारा
फिर क्यों तकदीर पर आँसू बहाएँ।
सजा उनकी भी मिलती है
करते नहीं हम जो खताएँ।।
