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डॉ0 साधना सचान

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डॉ0 साधना सचान

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जौहर

जौहर

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परिस्थितियों और समय के

हवन कुंड में

जौहर हो जाते

न जाने कितने

ख्वाब और तमन्नाएँ

किसे फुरसत है

जिसे मन की 

पीड़ा समझाएँ

ऊँची-नीची राह

जीवन की

पैरों के छाले देखें

या दिल के 

ज़ख्म सहलाएँ


अपना ही जब

अपने को छलता है

वो पीड़ा बनकर

जीवन भर रिसता है

भीड़ भरी इस दुनिया में

फिर दिल किसी को

अपना कहने से

डरता है

मुस्कान बने

या बने अश्रु जल

हर रिश्ता

दिल में ही रहता है।।

 



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