अनजाना है सफर
अनजाना है सफर
अनजान सफर सा ये जीवन
कभी सुलझा, कभी सघन वन।
लक्ष्य पर बढ़ते कदम अविचल
प्रतिक्षण दृश्य जाते हैं यहाँ बदल।
निज क्रंदन से शुरु, क्रंदन पर खत्म
कभी प्रकाश तो कभी घेर लेते तम।
कितने साथी मिलते हैं चलते -चलते
कुछ खो जाते, कुछ संग-संग चलते।
स्वयं दीप सा पथ प्रकाशित करना
लक्ष्य सधे बिन तुम मत रुकना।
