STORYMIRROR

Jeetal Shah

Fantasy

4  

Jeetal Shah

Fantasy

अनजान

अनजान

1 min
374

हां में कुछ डरी डरी सी थी,

हा में कुछ सहेमी सहेमी सी थी,

था मेरा पहेला दिन इस ऑफिस में,

अनजाने लोग अनजाने रिश्ते,

इस भीड में लगा हमें की हम,

कहीं खो गए,


तब बढ़ाया कदम,

 आपने हमारी ओर,

इस कदर लगा हमें,

कुछ ऐसा जैसे कोई,

राह  मिल गई हो,

मेरी हिम्मत बढाई

आपने,


आसमान को छुना सिखाया

आपने,

कदम कदम पर,

सीढ़ी चढ़ना सिखाया

आपने,

गिर कर खुद को,

संभाल ना सिखाया

आपने,


करते हम आपका,

शुक्रिया हर पल,

हर घड़ी आपका,

अनजाना जो,

रिश्ता था हमारा,

वो कब बन गया,

सयाना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy