अनजान सफ़र
अनजान सफ़र
सफ़र भले अनजाना-सा हो, साथी से पहचान रहे।
लाख भले कठिनाई आयें, चेहरे पर मुस्कान रहे।।
हर शख़्स को, दुनिया में गर एक मौका मिल जाए।
वो चाहेगा कोई एक पन्ना उसके ज़हन से मिट जाए।।
नहीं ख़्वाहिश है भूले से भी, सब कुछ याद रखने की।
नहीं तहज़ीब थी, हमको कभी कुछ भी परखने की।।
स्वयं के हाथ में न है नसीबा, क्या गिला रब से।
वही लौटायेंगे सबको, मिला है जो हमें सब से ।।
