STORYMIRROR

अपर्णा गुप्ता

Abstract

3  

अपर्णा गुप्ता

Abstract

अनजान सफर के तहत

अनजान सफर के तहत

1 min
174


कान्हा तेरी राहों में मैं दीप जलाये बैठी हूं

कांटा न चुभे पाँव में, फूल बिछाये बैठी हूं

दिल तुझे दिया था कभी उसी दिल के लिये

वही तेरी याद अपने दिल से लगाये बैठी हूं

सुबह से शाम हो गई कान्हा तेरे दरस को

सुबह से मैं बिना पलक झपकायें बैठी हूं

राह बुहारे सांसें मेरी धड़कन हुई बाँसुरी तेरी

तेरा ही गीत मैं होठों से लगाये बैठी हूं

वही मोर मुकुट और पीत पीताम्बर पिया

मैं तो बस तेरी छवि की आस लगाये बैठी हूं


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract