अनचाहा सवाल....
अनचाहा सवाल....
आज फिर एक अनचाहा सवाल है..
और उसका ना मिलने जवाब है, जो सामने आ खड़ा...
समझा चुका था मैं खुद को के वो छोड़ चुकी हैं मुझको,
मेरे चाहकर भी अब वो कौन सा लौट आयेगी...
बहुत पुकारा था...खामोश रहकर भी...
चिल्लाया करता फिर भी डरता था...वो सुन ना ले मेरी चीख को,
खामोशियों की सन्नाटों में हर पल उससे पुछता....
"क्या .. तुम लौट आओगी?"
जवाब भी मैं ही देता..."वो अब नहीं आने वाली.."
तो कल रात को क्यों यूँ हुआ...
वो लौट आयी थीं... मेरे पास...
एक पल को लगा क्या मैं सपने में हूँ...
फिर लगा....काश....ये सपना ही होता..
वो आयी थी मेरे बांहों में...मुझे ढेर सा प्यार करने..
डर था मन में ... कुछ तो मैं खोने वाला हूँ...
फिर भी उसकी बांहों में मैं खींचता ही चला गया..
किया था उसने ... और मैंने उसे जी भरकर प्यार....
फिर क्यूँ...एक ही पल मैं फिर वो मुझे दूर कर गयी...
छोड़ गयी इन अनजाने पहेलियों में...
पूछा क्यूँ किया मुझे प्यार...पर जवाब ना दिया उसने...
फिर -फिर पूछा...
पहले चुप रहीं...फिर बातों को घुमाने लगी...
उसके इस अंदाज से...मैं बिल्कुल टूट चुका हूँ...
खामोश हूँ बस इस आस पर...
फिर शायद कल सी कोई रात होगी मेरे नसीब में....
मुझे उसके मुहब्बत की जरूरत ही...जिंदा रहने के लिए........