अनचाहा सा ख्वाब
अनचाहा सा ख्वाब


एक अनचाहा सा ख़्वाब आया और
सँवार गया मेरी पलकों को,
एक हवा का झोंका आया और
बिखेर गया मेरी जुल्फों को,
जुल्फें जो हवा के झोंके के संग बह रही थी,
मानो अपने दिल की बात उस झोंके से कह रही थी,
जाने क्या कहा इन नासमझ जुल्फों ने,
जाने क्या वो नामुराद झोंका समझ गया,
कितनी शिद्दत से संवारा था मैंने अपनी जुल्फों को,
लम्हे भसितम र को आया और बिखेर गया,
अजी... बिखेर गया तो बिखेर गया,
इतनी इनायत तो करता,
जुल्फें बिखेरनी थी तो बिखेर देता
इतनी उलझने तो ना छोड़ता,
वो तो आया और चला गया,
काश कि कर जाता कोई करम,
देखती हूं जब इन जुल्फों को तो
याद आता है उसका सितम,
देकर ये उलझने वह तो चला गया
मेरे हिस्से रह गया बस यही दर्द-ए-ग़म,
ये कहानी शुरु यहां से हुई है
न समझो यहां हुई है खत्म।