अमर शहीदखुदीराम बोस
अमर शहीदखुदीराम बोस
किस तरह लिखूँ उन वीरों के
अतुलित साहस का किस्सा मैं
किस तरह सुनाऊँ गाथाओं का
स्वर्णिम उर्जित हिस्सा मैं
सत्तरह बरस का बालक जब
आज़ादी रण में कूद पड़ा
फूलों सी कोमल काया ले
दानव दल से पुरजोर लड़ा
पुस्तक वाले नन्हे हाथों में
गोली और बारूद थाम
शोले धाधकाये थे दिल में
ओठों पर था बस कृष्ण नाम
हाथों में लेकर के गीता
चढ़ गया मृत्यु की बेदी पर
उन्नीस बरस के बालक से
अंग्रेज कांपते थे थर - थर
वह ख़ुद फंदे पर झूल गया
तब मिल पाई ये आज़ादी
कुछ शर्म करो अब करो नहीं
उसके सपनों की बरबादी
इन आज़ादी की लपटों में
जानें कितने कुर्बान हुए
उन अहसानों के बदले हम
लुच्चे, गुंडे, बेईमान हुए
थोड़ी मर्यादा जीवित हो
तो उन वीरों का मान करो
उनके अहसानों के बदले
उनका कुछ तो सम्मान करो।।
