अम्मा की लाडली
अम्मा की लाडली
मेरी गुड़िया परी, मेरी नन्ही शहजादी,
अब हो बड़ी, अब बन ब्रह्मज्ञानी
अम्मा की लाडली, है बड़ी नादान,
अपनी गम खुशी का,
ना करती आदान-प्रदान।
माना मैं मां नहीं, तेरा पिता हूं,
पर सदा से ही मैं तो तेरे लिए जीता हूं।
आपकी तरक्की है, सपना मेरा,
खूब सोच, दुनिया में कौन है अपना तेरा ?
मैं जो कुछ कहूं तो, देना आप ध्यान,
पूछूं जो बताओ, तभी होगा कल्याण।
अगर चाहो तुम तरक्की, तो साधना करो,
जीवन में देवता की आराधना करो।
गायत्री ब्राह्मण की कामधेनु,
पहले ब्राह्मण बन जाओ,
बिना ब्राम्हण बने
नहीं तुम"वेद" समझ पाओगे।
इष्ट देवता सविता हमारे,
यह तो सृजनहार हैं,
इनसे ही यह जीवन है,
इनसे ही यह संसार है।
जीवन को यज्ञमय बनाएं,
यज्ञ ही हमारा नित्य कर्म,
सत्य कर्म ही है यज्ञ तुम्हारा, पाना,
सद्बुद्धि ही गायत्री साधना का मर्म।
दान करो तीनों शरीर से,
इसका यही सदुपयोग,
स्थूल शरीर से श्रम -संसाधन,
सूक्ष्म से विचार- ज्ञान -योग।
कारण शरीर से भाव संवेदना,
हो तेरा अपना विश्व वेदना।
बोओ-काटो का नियम सदा,
तो चलता रहेगा ही,
कर्मफल तो तुझे हमेशा,
जीवन में मिलेगा ही।
परिष्कार कर तीनों शरीर को,
बने तब यह देव समान,
धुलाई- रंगाई और कलफ,
जैसे करते हो कपड़े पर।
साधना -आराधना -उपासना,
बना जीवन का अंग,
साधना जीवन देवता की,
विश्व देवता आराधना संग।
आत्मदेवकी कर उपासना,
होंगे जीवन में हर रंग।।
आत्मबोध और तत्व बोध की,
भी "गुड़िया "लो ज्ञान,
नित्य प्रातः हमारा नवजीवन हो,
रात्रि मरण- ईश्वर -शरण जान।
देना गुरु को दक्षिणा भी,
स्वयं में देवत्व जगा कर,
कर मनुष्य में देवत्व उदय,
बना धरती स्वर्ग समान।
गुड़िया परी, मेरी नन्ही शहजादी,
अब हो गई बड़ी, अब बन ब्रह्मज्ञानी।