अकेली हो जाएगी माँ
अकेली हो जाएगी माँ
वह बचपन से देखता आ रहा है
माँ को देर रात तक जगते हुए
समझता था घर में होंगे बहुत काम
शायद पूरी रात खटती होगी माँ.
मगर जैसे जैसे वह सयाना हुआ
सच्चाई कुछ और थी सामने
माँ देर रात तक जगती थी इसलिए
कि पापा नशे में धुत्त होकर
आते थें देर रात घर
यह एक दो दिन की बात नहीं
लगभग रोज की ही कहानी थी.
रात के 10 बजते ही वह चला जाता सोने
मगर माँ लेकर कोई काम काटने लगती समय और
लगाने लगती दरवाजे की ओर टकटकी
लघुशंका के लिए जब उठता वो
माँ को पाता जगते हुए
तब वह भी जाकर माँ के पास
बैठ जाता लेकर आधी रात को अखबार
माँ उसे टोकती नहीं क्योंकि
उसके बैठने से माँ को मिलता था संबल
दरवाजे पर खटाक सी आवाज़ के साथ
पता चल जाता कि है कौन....
देखता वह लड़खड़ाते कदमों से
पापा को अंदर दाखिल होते हुए
फिर चैन की सांस ले वह
लौट आता अपने कमरे में.
फिर से करता सोने की कोशिश
मगर सारी रात पापा के
चीखने-चिल्लाने की आवाज़
गूंजती रहती मन-मस्तिष्क में
होश में होते पापा तो शायद
पूछते माँ से कि
वो खाना खा चुकी या नहीं
और तब ही तो समझते
माँ की अंतर्वेदना
देर रात अक्सर माँ-पापा में
होती रहती बहस मगर
हाथापाई की नहीं आई नौबत कभी
शायद इतने होश में होंगे पापा कि
उनका जवां बेटा है घर में मौजूद.
लेकिन कल जा रहा है वह दिल्ली
एक निजी कम्पनी ज्वाइन करने
लेकर माँ का आशिर्वाद और
एक चिंता भी साथ कि
उसकी गैरमौजूदगी में
देर रात जगते हुए
अकेली हो जाएगी माँ
आधी रात को पापा के आने के बाद
शुरू हो जाएगी फिर दोनों के बीच बहस
हर बार की तरह पापा नहीं होंगे होश में
मगर उन्हें इतना होश होगा अवश्य कि
उनका बेटा अब नहीं है घर में मौजूद
और शायद नशे की हालत में
चीखते-चिल्लाते वो गुस्से में
उठाना शुरू कर दें माँ पर हाथ...!