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राकेश सिंह सोनू

Romance

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राकेश सिंह सोनू

Romance

मैं रखूँगा तेरी यादों को ज़िंदा

मैं रखूँगा तेरी यादों को ज़िंदा

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"पता है सनम आधी रात हो चुकी होती है, फिर भी जगता हूँ मैं।

चाहता हूँ तेरी तरह मैं भी चैन की नींद सोऊँ, लेकिन जगता हूँ मैं।


ये नींदों का उड़ना यूँ ही नहीं 

मेरे हिस्से का पाप है सनम

हाँ तुम्हें टूटकर चाहने का पाप, 

तुम्हें हरगिज़ ना भूल पाने का पाप,

हर वक़्त तुम्हें दिल में बसाए रखने का पाप।

कितना बताऊं मेरे पाप की फेहरिस्त बड़ी लम्बी है सनम

क्या सच में तुम सुन पाओगी,

जो पहले कभी ना बता पायें हम।


बिना तेरी इजाजत तेरी मासूमियत को 

दिल में बसा लेना ये तो पाप हुआ न सनम।

हर बार अपने दर्द भरे आँसुओं से तेरे कदम रोकना ये तो पाप हुआ न सनम।

तेरे लौट जाने के बाद भी ज़िन्दगी समझ तुझे सांसें बना लेना ये तो पाप हुआ न सनम। 

सच बोलने की बीमारी है चलो ठीक है, मगर अपने शब्दों से तुम्हें मोह लेना ये तो पाप हुआ न सनम। 

मैंने जब इतने पाप किये हैं फिर प्रायश्चित तो करना पड़ेगा ना।

इसलिए सनम मैं खुद से ही खुद को सज़ा देता हूँ

तुम जब उधर चैन से सोती हो मैं इधर रातभर तेरी याद में तड़पता हूँ। 

 बीते लम्हों से तेरी आवाज़ चुराकर ख़ुश होता हूँ

 जो सुन लूँ तेरी मीठी बोली

अंदर-ही-अंदर मैं रोता हूँ। 


ओह, देखो ना 'प्रिय' फिर से नया साल आ गया।।

 मगर तेरी यादों के आगोश में डूबने से अच्छा क्या है।


यहां लोग नए बरस को गले लगा पुराना कैलेंडर भूल जाएंगे और यही तो ज़माने का दस्तूर है  

शिकवा किसी से हम क्या करें, दोष किसी को हम क्यों दें, हो सकता है कोई दिल से बहुत मज़बूर है।


चाहे तू मुझे भूलने पर मजबूर हो जा, चाहे तू सदा के लिए अज़नबी बन जा।

मगर मैं रखूँगा 'तेरी' यादों को ज़िंदा, साल दर साल, हमेशा-हमेशा।



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