ऐ रात, कहाँ से तू आती है…!!
ऐ रात, कहाँ से तू आती है…!!
ऐ रात, कहाँ से तू आती है…!!
इतने सारे सपन सुहाने, किस गली से लाती है।
थके हारे सताये मन को ख़्वाबों से बहलाती है।
ऐ रात, कहाँ से तू आती है…!!
दिन भर के प्रयास के बदले जो मिलता उपहास।
टूट जाता तन मन उसका और, हो जाता उदास।
ऐसे टूटे बिखरे मन में हसीं तस्वीर तू सजाती है।
सच सच बता, ऐ रात, कहाँ से तू आती है…!!
चलते चलते कोई राही, राहों में जो थक जाये।
दिनभर की भागा-दौड़ी में जो लक्ष्य भटक जाये।
ऐसे मायूस म्लान मन में नई ऊर्जा भर जाती है।
ऐ रात, क्या देवलोक से तू आती है..!?
दिन भर सूरज की गरमी में रासि झुलसती सी।
धूल धूसरित प्रदूषित हवा में वो सिसकती सी।
धरती अंबर को शीतल चाँदनी से सहलाती है।
सच में, ऐ रात, कहाँ से तू आती है…!
ऐ रात, कहाँ से तू आती है…!