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Sachhidanand Maurya

Abstract

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Sachhidanand Maurya

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ऐ मेरी प्यारी साईकिल

ऐ मेरी प्यारी साईकिल

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तुम ही तो हो जो पेट्रोल डीजल की

कीमतों को मात देती हो,

दूरियाँ कितनी भी हो मगर धीरे धीरे,

ही सही नाप देती हो।


तुम्हारे चलते पहिए द्योतक हैं,

कि जीवन चलने का नाम है,

तुम्हारे दो पैडल साक्षी हैं कि,

जीवन मे रुकना हराम है।


तुम हौसलों को हवा देती हो,

छोटे बच्चों से प्यार जता देती हो,

मैं किसी से कम नही बता देती हो,

कभी डाकिया पहुचाता था सन्देश तुम संग,

आज दूर रहने वाले डाकिये को उनके घर

तक पहुँचा देती हो।


तुम्हे हम पहले कैंची चलाते हैं,

फिर तुम्हारी मखमली सीट पे आते हैं,

तुम्हारे आधुनिक रूप उनको खूब भाते हैं,

गियर वाली के तो भाव अलग हैं,

तुमको लेके स्कूली बच्चे रेस लगाते हैं।


तुम्हारी महिमा का बखान मुझे अच्छा लगता है,

तुम पर लदा समान मुझे अच्छा लगता है,

तुम किसी उड़नपरी से क्या कम हो,

तुम पर धनी, गरीब, किसान मुझे अच्छा लगता है।


तुमसे बचपन का लगाव कितना है,

तुमसे पर्यावरण का बचाव कितना है,

तू जाड़े की गर्मी, धूप का छांव कितना है,

तुम्हारा हमारा जीवन से जुड़ाव कितना है।


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