ऐ भारत माँ के लाल
ऐ भारत माँ के लाल
ऐ भारत माँ के लाल क्या शान तेरे पहनावे की
जब भी आया तू तिरंगे में लिपटे हुए।
तू मूक था पर हर तरफ़ अल्फ़ाज़ थे तेरे,
तू शान्त था पर ग़रज उठे वंदे मातरम् के नारे।
ना दिन दिया ना तूने तारीख़ ही मुकर्रर की,
तिरंगे का सहरा बाँधे दूल्हे ने ऐसे शिरकत की।
ना ढोल, ना शहनाई ना ही नगाड़े की धुन आई,
दुनिया बनी बाराती तेरी,घटायें सिंह सी गरजते हुए..
खुदा के अश्कों की बौछार आई तेरे जुलूस को अज़ल करते हुए।
ऐ भारत माँ के लाल क्या शान तेरे पहनावे की
जब भी आया तू तिरंगे में लिपटे हुए।
तेरे चेहरे के नूर के तलबगार हुए सब, बन के आया तू ऐसा अक़बर अज़ीम।
अब ईल्म हुआ हमे तेरी ज़िन्दगी का इश्तियाक,
कि छप गए गली मोहल्ले बस तेरे इश्तिहार।
तेरे इरादे से आज रूह हैरान है,
दे गया तू देश को ऐसा ईनाम।
हर शादियों की याददश्त ना जाने कितनी छोटी है,
पर बना गया तू इस जलसे को यादगार...
क्या क़ीमत अपने क़ौम की चुकाई तूने,
ख़जा को ख़ाक करके जीत दिलाई तूने।
ऐ भारत माँ के लाल क्या शान तेरे पहनावे की
जब भी आया तू तिरंगे में लिपटे हुए...
जब भी आया तू तिरंगे में लिपटे हुए।।
