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अहंकार

अहंकार

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अक्सर अपनी धमनियों में रोकते हैं

अपने जज़्बातों को हम

और फिर आंकते चले जाते हैं

उन जज्बातों से औरों के रंग


आंक तो रहे होते हैं

स्वयं अपने जज़्बातों को हम

पर इस जद्दोजहद में होने लगता है

जीवन प्रवाह कम


रक्त तो बह रहा होता है धमनियों में

लेकिन जीवनवायु हर क्षण प्रदूषित होती है

साँस तो चल रही होती है मगर

अंतरात्मा घोर कलुषित होती है


अपने शरीर की ऊर्जा को करते हैं नियंत्रित

जब जज़्बातों की परत को करते हैं सम्मिलित

तो क्या गुनाह है जज़्बातों को काबू करना?

फिर गुनाह है उसमें बह जाना?


बह जाना जज़्बातों में है मेरी हार

पर काबू करना भी बन जाता है मेरा अहंकार

अहंकार वो गति अवरोधक है

जिसे करना है मुझे स्वीकार


एक पल जिसमें थम के मुझको मिलती है

मेरे जीवन की गति

अहंकार को मत आंको तुम

किसने कहा निहित नहीं

इसमें तुम्हारे जीवन की प्रगति?


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