कुछ छोड़ना भी है ज़रुरी
कुछ छोड़ना भी है ज़रुरी
कुछ तो छूटेगा ही
कोई तो रुठेगा ही।
एक छोर पकड़ो
दूसरा फिसलता है
एक कदम संभालो
तो अगला लड़खडाता है।
रात आये तो दिन छूट जाता है
ख़ुशी पकड़ो तो ग़म रूठ जाता है
चाँद और सूरज को ही देख लो
एक उगता है तो दूसरा विलीन हो जाता है
एक देता ठंडक तो दूसरा तपाता।
चाँद को पकड़ने की कोशिश मे
सूरज तो छूटेगा ही सही
सूरज को दी अहमियत तो
चाँद रूठेगा ही सही।
हर छोर नहीं सिल सकते हम
हर ओर नहीं चल सकते हम
इस पल मे अगले पिछले पल
इक साथ नहीं जी सकते हम।
ज़िन्दगी पकड़ने से
मौत नहीं रुकती
मौत जो लगी गले तो
ज़िन्दगी कहाँ रूकती है।
छोड़ना हमे सीखना है
पकड़े रखने मे केवल वेदना है
इस पल मे जो लगती अधूरी
वही है हर पल में पूरी।
कल को जो पकड़ोगे आज
कल मे फिर ढूंढोगे आज
नित्य क्रंदन करते रहोगे
जब तलक यह नहीं सुनोगे।
कुछ तो छूटेगा ही
कोई तो रूठेगा ही।