अध्यात्म की खाद
अध्यात्म की खाद
वृक्ष करता अपना खाद संग्रह
दो तरीको से दो दिशाओं से
एक तो पल्लव,
जिनकी प्रकृति चंचल
कभी ठंडी हवा,
कभी सूरज की रोशनी
और बारिश का जल
इन से जो कुछ लेने योग्य है,
सब ले लेता है।
उसके बाद सूख कर
जीर्ण अवस्था में झड़ जाता है
पर जड़ स्तब्ध ,
दृढ़ होकर गहराई में जाकर
अपने एकांतिक प्रयास से
खाद करती है एकत्रित,
जड़ और पल्लव
ये दोनों पक्ष हमारे भी है
हमारी अध्यात्मिक खाद
वृक्ष के समान ही
लिया जाता है दो दिशाओं से।
प्रधान पक्ष जड़ का होता है
यही है चरित्र पक्ष
यहां हम शांत और स्तब्ध होते हैं
और ईश्वर में प्रतिष्ठित होते हैं,
इस तरह के ग्रहण का कार्य पोषण करता है
ये शक्ति और प्राण का संचार करता है
चरित्र जिस शक्ति से विस्तृत करती है प्राण को
वो ही होती है निष्ठा।
वो स्थिर होती है गहराई में जाती है
वो डगमगाती नहीं
आंसुओं के वेग की तरह बह नहीं जाती
हृदय में परिवर्तन चलता रहता है
जिस बात से आज तृप्ति उसी से कल
वितृष्णा हो जाती है।
खेल चलता है उसमे ज्वार भाटे सा
कभी उल्लास तो कभी विषाद
वृक्ष की पत्तियों की तरह
आज विकसित तो कल सूख कर झड़ गई
ये हमारा भाव पक्ष।
आज है कल नहीं
इसे ऐसे समझे जिस पेड़ की जड़
काट दी जाती है
उसे जला देती है सूरज की गर्मी भी
और सड़ा देता है वर्षा का जल भी।
ईश्वर प्राप्ति के लिए निष्ठा के साथ साथ
होती है भाव की आवश्यकता
पर भाव को खोजना नहीं पड़ता
वो विभिन्न दिशाओं से अपने आप
हमारे पास आ जाता है।
पवित्रता और निष्ठा हमारी मूल वस्तु हैं
वृक्ष के जड़ की तरह
भावुकता का संबंध पल्लवों से।
