अधिकार-कर्त्तव्य और आंदोलन
अधिकार-कर्त्तव्य और आंदोलन
निज कर्त्तव्यों को विस्मृत कर
स्मृत रखते हैं केवल अधिकार।
अपने दुखों से अधिक दुखदाई
पर खुशियां हैं दुख का आधार।
तृण-तृण चुनकर बड़े जतन से
हम निज सपनों का नीड़ बनाते हैं।
आंदोलित होते हैं क्रांति नाम से
इसे खुद तहस-नहस कर जाते हैं।
खून पसीने कमाए धन से हम में
हर कोई ही तो टैक्स चुकाता है।
बिन सोचे नष्ट करता निज संपत्ति
औरों दुख देता और दुख पाता है।
क्या करना है ? यह भूले रहते हैं
जो मिलना है रखते हर पल याद।
अधिकार न मिले व्यग्र हो चिल्लाते
पर-अधिकारों की न सुनें फरियाद।
आकर बहकावे में निज क्षति करते
अमन-चैन कर लेते हैं सब बर्बाद।
नेता को आती खरोंच तक भी ना
जन-मानस को रखना है सदा याद।
