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अभिनंदनजी वर्धमान

अभिनंदनजी वर्धमान

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नील गगन का रखवाला

संभाले था डोर जान ऐ वतन

निभाते-निभाते कर्तव्य अपना

जाने कैसे छूटा आँगन ?


छोड़के अपना आँगन पहुँचा

भारत का शेर नापाकियों के वतन

फिर भी ना फिक्र थी

ना ही कोई गम

हिंदुस्तानी मिट्टी की यादों से

भरा था उसका दामन।


हिम्मत जोड़ी शूर सिपाही शेर ने

करके भारत माँ के

नाम का तिलक रक्त चंदन

और एक ही बात ठानी अपने मन ही मन

मेरी जान से प्यारा है, मुझे हिंद वतन।


ना खोली जुबाँ और ना झुकी गर्दन

निभाता गया खामोशी से वो हर बंधन

जानता था ओ सच्चा है सिर्फ हिंद चमन

नहीं चलेगा देर तक

नापाक खोटे सिक्कों का चलन।


उड़ने लगा भरोसा तब,

चाल बदल गया दुश्मन

चिंता में पड़ गया सारा वतन,

किया ईश्वर को नमन

करो कौरवों का नाश

तुम ही हे राधा के कृष्णन्।


तन मन तो था गैर वतन में,

अंतरिक्ष में तैर रहा था जीवन

लेकीन कानों मे गूँज रहा था

भारत माँ का गुंजन।


उस ललकारी के गुंजन से ही

चल रही थी धड़कन

कितनों ने किये प्यारे तेरे

सलामती के होम-हवन।


कभी ना भूल पायेंगे

तेरी शूरता के ये क्षण

भारत माँ के सुपूत रघू नंदन

कर्तव्य दक्ष होकर तूने निभाऐ अपने वचन

शान में भारत के मुकूट में जडाएँ कोहीनूर,


अलक नगरी के कुंदन

सही सलामत लौट आया

भारत केसरी नंदन

वर्तमान अभिनंदन।

आपका स्वागत,

अभिष्ट चिंतन,अभिनंदन

।।अभिनंदन।।



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