अभिमान और स्वाभिमान
अभिमान और स्वाभिमान
उसके अभिमान और
अपने स्वाभिमान की
कशमकश में
फंसी---- नन्हीं सी जान
जीवन के अथाह सागर में----
इक छोटी सी नैया जैसे,
अपने अस्तित्व को,
बनाए रखने की चाहत में,
टुकड़ा टुकड़ा टूटती,
किसी साहिल की तलाश में
लम्हा- लम्हा सरक रही हो-- जैसे,
रोज-- रोज खा कर चोट,
अपने टूटे हुए स्वाभिमान को
जिंदा रखने के प्रयास में----
रोज टकराती है---
उसके अभिमान से----
और खुद की हस्ती को
सलामत रखने हेतु
खुद किरची-- किरची
टूट जाती है-----
फिर भी जारी है कोशिश---
क्योंकि यकीं का ये सफर---
इक दिन----
मंजिल पर जा पहुंचेगा----
टूटेगा जब अभिमान और
कायम रहेगा स्वाभिमान !