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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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अभी गर

अभी गर

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अभी गर ये अक्षर हैं

 तो शब्द इन्हें तुम बनने दो।

 हर मौसम को जीने दो।

 हर राग में इनको रमने दो


अभी गर लकीरें हैं 

तो आकार इन्हें तुम लेने दो।

सागर की ये बूंदें हैं।

नदियों सा ,

इन्हें तुम बहने दो ।


उड़ते है तो उड़नें दो

विश्वास की जड़ बनने दो

भूत भविष्य को रहने दो

हुनर को ही जीने दो।


तूफाँ से टकरा जाएंगे

हवाएं है, अभी बहने दो ।

खुद को ये तराश ही लेंगे

रूठते हैं तो रूठने भी दो।


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