अबधा रामजी की
अबधा रामजी की
खेलने-खाने की आयु में ही विश्वामित्र संग चल पड़े।
अयोध्या का राजा बनने जा रहे थे;वनवासी बन गए।
पिता का अंतिम दर्शन न कर सके;न ही मुखाग्नि दी।
वर झूठा न हो,मित्रता हेतु बालिवध का कलंक लिया।
राजधर्म का पालन करते हुए धर्मपत्नी से अलग हुए।
वन में पुत्ररत्न का जन्म हुआ; वात्सल्य सुख न मिला
आँखों के सामने इनकी अर्धांगिनी धरती में समा गयीं।
लक्ष्मण सदृश्य अनुज को इन्हें प्राणदंड देना पड़ गया।
अवतारी होकर भी साधारण मानव समान कष्ट उठाये।
अनंत कष्ट उठानेवाले मर्यादा पुरुषोत्तम रामराज चलाये।