अब वो पहले जैसी नहीं रही
अब वो पहले जैसी नहीं रही


दिल में जो दबी-दबी कली थी,
वो अभी तक नहीं खिली
मैंने चाहा जिसे सच्चे मन से,
ऐ खुदा वो क्यूँ नहीं मिली।
अब दर्द ही दर्द मिल रहा है,
हर रोज नाश्ते में
डरा-डरा, सहमा-सहमा
चल रहा हूँ,
हर रोज रास्ते में।
शायद एक बार ही,
मेरी बात मान लिया होता सही
भूल जा उसे यार
अब वो पहले जैसी नहीं रही !
वो रूठना, मनाना,
घबराना, शरमाना,
हवा में हर रोज दुपट्टा उड़ाना
दूर से ही देखकर मुझे
नजरें झुकाना।
झटक कर जुल्फ़
दिल की धड़कन बढ़ाना
पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा,
एकदम खाली-खाली
अज़नबी हो जाना।
उनके दिल में क्या है,
जान लिया होता सही
शायद एक बार ही,
मेरी बात मान लिया होता सही।
भूल जा उसे यार
अब वो पहले जैसी नहीं रही !